सामान्यीकरण
परिचय: सामान्यीकरण
साधारण शब्दों में यदि कहा जाये, तो इतिहास-लेखन के क्षेत्र में सामान्यीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत इतिहासकारों का कार्य केवल इतिहास का वर्णन करना नहीं होता है| बल्कि, उनका कार्य तो प्राप्त किये गये साक्ष्यों की सत्यता की जाँच करना और उन साक्ष्यों को उनके कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करके सही क्रम में संजोना होता है|
सामान्यीकरण की पद्धत्ति के बिना किसी भी जटिल समस्या की व्याख्या का वर्णन करना असम्भव है| इस पद्धत्ति का प्रयोग करने वाले इतिहासकार को तथ्य की सत्यता पर ध्यान देना आवश्यक है| इतिहासकार को इतिहास के किसी भी विषय का वर्णन करते समय उससे सम्बन्धित स्त्रोतों की सत्यता और जानकारियों को एकत्रित करके, तिथिवार क्रम में संजोना आवश्यक होता है|
इतिहास के किसी भी विषय का वर्णन करते समय इतिहासकार को उसमें अपनी कल्पनाशीलता का प्रयोग नहीं करना चाहिये| ऐसा करने से इतिहास के वास्तविक स्वरुप पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है| बल्कि, उसे तो इतिहास के उस विषय, जिसपर वह इतिहास-लेखन कर रहा है, से सम्बन्धित साक्ष्यों की सत्यता को जाँच-परखकर तथा उसे कालक्रमानुसार व्यवस्थित करने पर अधिक ध्यान देना चाहिये| जिससे कि, हमारे आगे आने वाली पीढ़ियों को उस काल.. उस विषय के बारे में सही एवं विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हो सके|
तो आइये दोस्तों, सामान्यीकरण का परिचय प्राप्त करने के बाद अब हम इतिहास-लेखन के सामान्यीकरण विषय का विस्तारपूर्वक अध्ययन करते हैं|
सामान्यीकरण की पद्धत्ति में किसी भी इतिहासकार के द्वारा तथ्यों को एक के बाद एक श्रृंखला में पिरोया जाता है| यदि हम इतिहास के किसी विषय का विस्तृत विवरण करते हैं. उसमें सही स्त्रोतों की बात करते हैं तथा उसकी व्याख्या करते हैं, तो यह प्रक्रिया सामान्यीकरण की पद्धत्ति कहलाती है| जैसे किसी काल में हुये किसी शासक की जाति, धर्म अथवा उसके कुल, समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, प्रशासनिक, आदि तथ्यों की व्याख्या करना सामान्यीकरण कहलाता है|
सामान्यीकरण के प्रकार
1. निम्न स्तरीय सामान्यीकरण
2. मध्य स्तरीय सामान्यीकरण
3. व्यापक सामान्यीकरण
4. मेटा हिस्ट्री
1. निम्न स्तरीय सामान्यीकरण
इस प्रकार का सामान्यीकरण करते समय हम किसी तथ्य अथवा घटना को एक साँचे में ढालकर, उसका वर्गीकरण अथवा कालक्रम के अनुसार एक के बाद एक श्रृंखला में व्यवस्थित करते हैं| उदाहरण- किसी घटना को किसी विशेष वर्ष, दशक या शताब्दी से जोड़ना अथवा किसी व्यक्ति-विशेष को जाति, धर्म, क्षेत्र, व्यवसाय, आदि से जोड़ना|
2. मध्य स्तरीय सामान्यीकरण
इस तरह के सामान्यीकरण में हम किसी विषय के अध्ययन हेतु, उससे सम्बन्धित तथ्यों तथा साक्ष्यों के बीच अन्तर्सम्बन्ध खोजने का प्रयत्न करते हैं| उदाहरण- 1920 के दशक में जमशेदपुर में मजदूरों से सम्बन्धित सामान्यीकरण, 1930 के दशक में भारत में औद्योगिक पूँजीवाद के विकास से सम्बन्धित सामान्यीकरण, आदि|
3. व्यापक सामान्यीकरण
इस तरह के सामान्यीकरण में हम पूरे युग के समाज के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक व सांस्कृतिक तथ्यों का अध्ययन करते हैं| उदाहरण- जब कोई यूरोपीय विद्वान/इतिहासकार/अध्ययनकर्ता, जब अफ्रीकी समाज के विशिष्ट सामाजिक अथवा धार्मिक पक्षों का अध्ययन करता है, तो उसके दिमाग में अफ्रीका की प्राच्यवादी समझ होती है|
4. मेटा हिस्ट्री
यह अक्सर अनैतिहासिक होती है| इसके अन्तर्गत वे सिद्धान्त थोपे जाते हैं, जो इतिहास का हिस्सा नहीं होते हैं| इस प्रकार के सामान्यीकरण में इतिहास का ठोस अध्ययन उभरकर नहीं आ पाता| इस पद्धत्ति के उदाहरण हैं- हीगल, स्पैन्गलर, तायनबी, आदि|
सामान्यीकरण तब होता है, जब हम इतिहास से सम्बन्धित तथ्यों अथवा साक्ष्यों को समझने या आँकड़ों, वस्तुओं, घटनाओं, आदि तथा अतीत के दस्तावेजों के बीच अवधारणाओं की सहायता से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करते हैं और उसे मौखिक रूप से तथा लेखों के माध्यम से दूसरों तक पहुँचाते हैं|
इतिहास-लेखन के लिये सामान्यीकरण की आवश्यकता
इतिहास-लेखन में सामान्यीकरण शब्दों के अनुक्रम में निहित होता है| इतिहासकार अतीत की जानकारियों की खोज करता है, उन्हें एकत्रित करता है तथा उन्हें एक के बाद एक तिथिवार क्रम में व्यवस्थित करता है| इतिहासकार का प्रमुख कार्य होता है, जानकारियों की वैधता की जाँच करना, न कि उनकी व्याख्या करना|
इतिहासकारों के द्वारा तथ्यों की सत्यता को परखा जाता है, न कि सामान्यीकरण को| सामान्यीकरण की आवश्यकतायें निम्नलिखित हैं:
1. इतिहास-लेखन में चयन एक आवश्यक पहलू है| इतिहासकारों/अध्ययनकर्ताओं/विद्यार्थियों के सामने इतिहास के किसी विषय से सम्बन्धित काफी सारे तथ्य तथा साक्ष्य होते हैं| उन्हें इनमें से सही तथ्य चुनकर उनपर अपनी खोज करनी होती है| इतिहासकारों/अध्ययनकर्ताओं/विद्यार्थियों के पास इतिहास के किसी विषय से सम्बन्धित तथ्यों के चयन के लिये कुछ विशेष सिद्धान्त हुते हैं|
2. इतिहासकारों का दूसरा प्रमुख कार्य, उनके द्वारा एकत्रित किये गये तथ्यों का उनके कालक्रमानुसार श्रेणीबद्ध अथवा समूहबद्ध करना होता है| यह विषय के तौर पर, इतिहास का आधार विश्लेषण है|
इतिहास-लेखन में सामान्यीकरण से जुड़ी आपत्तियाँ
1. सामान्यीकरण से सम्बन्धित प्रथम आपत्ति, इस अवधारणा पर आधारित है कि, तथ्यों को सामान्यीकरण से पृथक कर देना चाहिये तथा सामान्यीकरण को इतिहास के तथ्यों से निकाल लेना चाहिये| परन्तु, इस आपत्ति का जवाब दिया जा चुका है| वास्तविकता में, सामान्यीकरण कि पद्धत्ति ही, तथ्यों को तथ्य बनाती है|
2. प्रत्येक घटना का अपना एक विशेष अस्तित्व तथा स्वरुप होता है| हर घटना अद्वितीय होती है तथा तथ्य यही है कि इस अनोखेपन को भी तुलना की आवश्यकता होती है| परन्तु इस अनोखेपन की तुलना, किसी ऐसी वस्तु से की जानी चाहिये, जिसे हम जानते हों|
3. इतिहासकार, अध्ययनकर्ता एवं आलोचक उन्हीं सामान्यीकरणों को अपना लक्ष्य बनाते हैं, जो पहले ही खोजे जा चुके हैं| इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये तथ्य यथार्थ पर थोपे जा रहे हों|
कुछ आलोचकों को लगता है कि सामान्यीकरण को इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं| फिर भी उन्हें दुबारा सिद्ध करने की आवश्यकता होती है| कई बार कुछ सामान्यीकरण प्रमाणित नहीं होते हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है| कई बार कुछ सामान्यीकरण अजीबो-गरीब प्रकार के तथा अटपटे होते हैं| इनके उत्तर आपत्तिजनक तथा अटपटे होते हैं|
आपत्ति ऐसे सामान्यीकरणों पर उठाई जाती है, जो अवैज्ञानिक तथा अतार्किक होते हैं| उन तरीकों को भी गलत माना जाता है, जिनकी सहायता से सामान्यीकरण तक पहुँचा जाता है| इन आपत्तियों को हटाने के लिये, समस्याओं को सही तरह से समझा जाना आवश्यक होता है| इसके लिये जरूरी है कि सामान्यीकरण स्पष्ट होना चाहिये, ताकि उसपर खुलकर बहस एवं चर्चायें हो सकें|
जब कोई उत्तम इतिहासकार होता है, तो उससे हमारी अपेक्षा होती है कि, वह अपनी पूरी ईमानदारी, निष्ठा तथा तकनीकी कौशल का प्रयोग करके सामान्यीकरण करे| जिससे हमें तथा आगे आने वाली हमारी पीढ़ीयों को इतिहास से सम्बन्धित सही जानकारियाँ प्राप्त हो सकें|
सामान्यीकरण की इतिहास-लेखन में अनिवार्यता
इतिहास-लेखन करते समय सामान्यीकरण से बच नहीं जा सकता| यहाँ तक कि जब कोई इतिहासकार, इतिहास-लेखन करते समय सोचता है कि वह ऐसा नहीं कर रहा है, तब भी वह सामान्यीकरण कर रहा होता है| सामान्यीकरण शब्दों के अनुक्रम में ही निहित होता है|
एक अवधारणा है कि इतिहास-लेखन का कार्य करने वाले किसी इतिहासकार अथवा किसी लेखक को इतिहास के उस विषय से सम्बन्धित अतीत की जानकारियाँ एवं साक्ष्य एकत्रित करने चाहिये और उन्हें तिथिवार क्रम में व्यवस्थित करना चाहिये, जिसपर वह लेखन-कार्य कर रहा है| इससे या तो अतीत का अर्थ उभरता है अथवा स्वयं को प्रकट करता है|
इसका एक विपरीत द्रष्टिकोंण भी है| वह यह है कि, कोई भी स्त्रोत अपने-आप कोई अर्थ प्रकट नहीं करता है, और टिप्पणियों का संग्रह भी, भले ही कितनी सावधानी से उन्हें एकत्रित किया गया हो| वे इतिहासकार/लेखक को यह नहीं बता पाते कि उसे क्या लिखना है?
सामग्री को कुछ तार्किक सिद्धांतों अर्थात् चयन के महत्त्व और प्रासंगिकता के कुछ सिद्धांतों के आधार पर व्यवस्थित करना होता है| नहीं तो, लेखन-कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति या इतिहासकार, ध्यान रखने योग्य तथ्यों में डूब जाएगा| यह निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है:
1. चयन की प्रक्रिया, इतिहास-लेखन का कार्य करने वाले व्यक्ति के लिये इसलिये जरूरी होती है, क्योंकि इतिहास के किसी विषय से सम्बन्धित तथ्य एवं साक्ष्य काफी सारे होते हैं| इसलिये इतिहास-लेखन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति या इतिहासकार इतिहास के किसी विषय से सम्बन्धित तथ्यों का चयन करता है|
चयन की इस प्रक्रिया में इतिहासकार/लेखक विषय से सम्बन्धित साक्ष्यों एवं तथ्यों की सत्यता को परखता है| चयन प्रक्रिया के बाद वह उस विषय से सम्बन्धित सही साक्ष्यों एवं तथ्यों को अपने पास एकत्रित कर लेता है|
2. इतिहास-लेखन का कार्य करने वाले इतिहासकार/लेखक के द्वारा किया जाने वाला दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य, एकत्रित किये गये साक्ष्यों एवं तथ्यों को एक-रक करके उनको तिथि के अनुसार सही क्रम में समूहबद्ध अथवा व्यवस्थित करना होता है|
इन दोनों बिन्दुओं के लिये स्पष्टीकरण, कार्य-कारण, उत्प्रेक्षण एवं प्रभाव आवश्यक तत्त्व होते हैं| दूसरे शब्दों में, एक विषय के रूप में इतिहास का आधार विश्लेषण है| वास्तव में, एक सीमित अर्थ को छोड़कर,तथ्य तभी तथ्य बनते हैं, जब उनका सामान्यीकरण किया जाता है|
इतिहास के विद्यार्थियों, इतिहासकारों, लेखकों, अध्ययनकर्ताओं तथा शोधकर्ताओं के लिये सामान्यीकरण के लाभ
इतिहास-लेखन के क्षेत्र में सामान्यीकरण की अपनी विशेष भूमिका है| सामान्यीकरण के सिद्धान्त का प्रयोग करके, इतिहास-लेखन का कार्य करने वाले व्यक्ति के द्वारा इतिहास के उस विषय से सम्बन्धित तथ्यों एवं साक्ष्यों की सत्यता की जाँच-पड़ताल की जाती है और उन्हें कालक्रमानुसार व्यवस्थित किया जाता है, जिस विषय का वह लेखन-कार्य कर रहा होता है|
इतिहास के विद्यार्थियों, इतिहासकारों, लेखकों, अध्ययनकर्ताओं तथा शोधकर्ताओं के लिये सामान्यीकरण के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:
1. यह उसके तथ्यों के संयोजन के सिद्धान्त प्रदान करते हैं, जिससे इतिहास के विद्यार्थियों, इतिहासकारों, लेखकों, आदि की वह आधारभूत समस्या हल हो जाती है, जिसमें उनके द्वारा जुटाये गये अस्त-व्यस्त तथ्यों को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया जा सके|
2. वह विद्यार्थियों, इतिहासकारों, लेखकों, आदि की अभिकल्पना को पैना करते हैं अथवा उनकी द्रष्टि को व्यापक बनाते हैं|
3. वह विद्यार्थियों, इतिहासकारों, लेखकों, आदि को निष्कर्ष निकालने, कार्य-कारण सम्बन्ध तथा परिणामों और प्रभावों की श्रृंखला स्थापित करने में सक्षम बनाते हैं|
4. सामान्यीकरण विद्यार्थियों एवं इतिहासकारों को प्राचीन और जाने-पहचाने तथ्यों एवं साक्ष्यों के बीच नवीन सम्बन्ध कायम करने में भी मदद करते हैं|
5. साफ-साफ शब्दों में कहा जाये, तो सामान्यीकरण विद्यार्थियों, इतिहासकारों, लेखकों, आदि को इतिहास के विभिन्न विषयों से सम्बन्धित स्त्रोतों एवं तथ्यों की खोज करने तथा उन्हें एकत्रित करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं|
दोस्तों, इतिहास-लेखन के सामान्यीकरण विषय से सम्बन्धित अपने इस ब्लॉग को मैं इसी आशा के साथ समाप्त करना चाहूँगा कि आपको मेरा यह ब्लॉग पसन्द आया होगा| आपको मेरा यह ब्लॉग कैसा लगा? और सामान्यीकरण से सम्बन्धित अपने बहुमूल्य विचार एवं जानकारियाँ ब्लॉग के अन्त में दिये गये कमेंट बॉक्स में अवश्य साझा करें|
तो दोस्तों, आज के इस ब्लॉग में बस इतना ही| जल्द मिलते हैं एक नये ब्लॉग के साथ| तबतक के लिये सुरक्षित रहिये, स्वस्थ रहिये, खुश रहिये, पढ़ते रहिये और नयी-नयी जानकारियाँ प्राप्त करते रहिये|
स्त्रोत: IGNOU M.A. History Books
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