हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: दामाद को ससुराल की संपत्ति पर नहीं मिलेगा कोई अधिकार, मौखिक अनुमति से नहीं बनता हक


भारत में संपत्ति विवादों की सूची में एक और कानूनी मिसाल शामिल हो गई है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि दामाद को सास-ससुर की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं होता, भले ही वह वर्षों से वहां रह रहा हो या उसने उसमें धन खर्च किया हो।
📌 मामला: भोपाल निवासी दिलीप बनाम ससुर
भोपाल के निवासी दिलीप अपने ससुर के घर में वर्षों से रह रहे थे। शुरुआत में ससुर ने उन्हें मौखिक सहमति से रहने दिया, लेकिन बाद में पारिवारिक मतभेद उत्पन्न हो गए और ससुर ने दिलीप से घर खाली करने को कहा।
ससुर ने मामले को SDM कोर्ट में उठाया जहाँ से दिलीप को घर खाली करने का आदेश मिला। अपील में दिलीप ने दावा किया कि उन्होंने घर के निर्माण में ₹10 लाख खर्च किए, अतः उनका अधिकार बनता है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया – मौखिक सहमति स्थायी अधिकार नहीं बनाती
हाईकोर्ट ने दिलीप की अपील को खारिज करते हुए कहा:
सास-ससुर की संपत्ति में दामाद का कोई स्वामित्व अधिकार नहीं होता।
जब तक कोई लिखित संपत्ति हस्तांतरण या कानूनी दस्तावेज ना हो, तब तक ऐसा कोई दावा मान्य नहीं।
संपत्ति में किया गया खर्च स्वामित्व नहीं, बल्कि दीवानी दावा बन सकता है।
फैसले से मिली अहम सीख:
रिश्तों के साथ-साथ कानूनी सीमाएं भी स्पष्ट रखना जरूरी है।
रहने की अनुमति स्वामित्व का अधिकार नहीं बनती।
दामाद यदि ससुराल में रहता है, तो बिना लिखित सहमति या कानूनी दस्तावेजों के उसका कोई कानूनी दावा नहीं बनता।
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